भगवान् कबीर और गुरु गोरखनाथ के बीच में शास्त्रों की बहस

एक बार की बात है की गुरु गोरख नाथ जी श्री रामानंद जी से शास्त्रों की बहस करने के लिए काशी आये हुए थे। पहले शास्त्रों पर बहस हुआ करती थी की देखते हैं की शास्त्रों में कौन कितना ज्ञानी है और किसे अभी ज्ञान अर्जित करने की जरूरत है। जब दोनों ही गुरु यानि गुरु गोरखनाथ और स्वामी रामानंद जी शास्त्रों पर बहस करने के लिए काशी में एकत्रित हुए।
स्वामी रामानंद के साथ बालक कबीर जी भी आ हुए थे। दोनों ही गुरु को एक ऊँची सीट पर बैठा दिया। स्वामी रामानंद जी की गोद में कबीर साहेब बैठते हैं जो बालक के रूप में हैं और उधर गुरु गोरखनाथ जी ने अपने हाथ में जो त्रिशूल ले रखा था उसे जमीं में गाड़ कर अपनी स्थान पर बैठ गए।
बैठने के पश्चात् गुरु गोरखनाथ ने स्वामी रामानंद जी से आग्रह किया की आप शास्त्रों की बहस शुरू कर सकते हैं। स्वामी रामानंद जी शुरआत आपसे ही होगी। यह सुनकर स्वामी रामानंद के बाल शिष्य जो कबीर साहेब जी ने कहा की आप सबसे पहले बहस मुझसे कीजिये फिर मेरे गुरुदेव जी से कीजियेगा। शास्त्रों में बहस करने से पहले आपको पहले मुझे हराना होगा तत्पश्चात ही आप गुरूजी से बहस कर सकते हैं अनयथा नहीं।
योगी गोरखनाथ प्रतापी, तासो तेज पृथ्वी कांपी।
काशी नगर में सो पग परहीं, रामानन्द से चर्चा करहीं।
चर्चा में गोरख जय पावै, कंठी तोरै तिलक छुड़ावै।
सत्य कबीर शिष्य जो भयऊ, यह वृतांत सो सुनि लयऊ।
गोरखनाथ के डर के मारे, वैरागी नहीं भेष सवारे।
तब कबीर आज्ञा अनुसारा, वैष्णव सकल स्वरूप संवारा।
सो सुधि गोरखनाथ जो पायौ, काशी नगर शीघ्र चल आयौ।
रामानन्द को खबर पठाई, चर्चा करो मेरे संग आई।
रामानन्द की पहली पौरी, सत्य कबीर बैठे तीस ठौरी।
कह कबीर सुन गोरखनाथा, चर्चा करो हमारे साथा।
प्रथम चर्चा करो संग मेरे, पीछे मेरे गुरु को टेरे।
बालक रूप कबीर निहारी, तब गोरख ताहि वचन उचारी।
गुरु गोरखनाथ जी कबीर साहेब से उनकी आयु पूछ रहे हैं –
गुरु गोरखनाथ जी ने बाल रूप में बैठे कबीर साहेब से कहा की, हे बालक कबीर जी आप तो संत हैं ही नहीं क्योंकि आप बालक हैं। आपका जन्म मनो कल ही हुआ है यानि की तुम अभी छोटे से बच्चे हो और मेरे साथ यानी गुरु गोरखनाथ के साथ शास्त्रार्थ यानि शास्त्रों में बहस करोगे। अपने अभी इस उम्र में शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। मेरे सामने तुम्हारी उम्र कोई मायने नहीं रखती है और न ही तुम। बेटा तुम तो अभी संत बने ही नहीं हो।
कबके भए वैरागी कबीर जी, कबसे भए वैरागी।
नाथ जी जब से भए वैरागी मेरी, आदि अंत सुधि लागी।।
धूंधूकार आदि को मेला, नहीं गुरु नहीं था चेला।
जब का तो हम योग उपासा, तब का फिरूं अकेला।।
धरती नहीं जद की टोपी दीना, ब्रह्मा नहीं जद का टीका।
शिव शंकर से योगी, न थे जदका झोली शिका।।
द्वापर को हम करी फावड़ी, त्रोता को हम दंडा।
सतयुग मेरी फिरी दुहाई, कलियुग फिरौ नो खण्डा।।
गुरु के वचन साधु की संगत, अजर अमर घर पाया।
कहैं कबीर सुनो हो गोरख, मैं सब को तत्व लखाया।।
भगवान् कबीर साहेब गुरु गोरखनाथ जी को अपनी आयु के साथ-2 यह भी बताया की वे संत यानि वैरागी कब बने?
जिस समय कबीर साहेब गुरु गोरखनाथ जी को यह सब बताते हैं तो उस समय वे अपने गुरुदेव के स्वामी रामानंद जी के समान अपने रूप को बनाये हुए हैं। संतो वेशभूषा माथे पर चन्दन का तिलक, एक टोपी यानी पगड़ी, एक बैग, एक सिक्का, और एक फेवडी (अंग्रेजी के “टी” अक्षर के समान भजन के लिए उपयोग करने के लिए यन्त्र) और एक लकड़ी की छड़ी लिए हुए हैं। उपर्युक्त भजन में कबीर साहेब गुरु गोरखनाथ जी से कहते हैं की हे गोरखनाथ मैं तो अब वैरागी हूँ और मेरी इतनी उम्र है की जब कुछ भी नहीं था मानो सृष्टि की रचना भी नहीं हुई थी। कबीर साहेब के वचन मात्र से ही सतलोक की प्रकृति का निर्माण हुआ है।
तब सत्पुरुष यानि कबीर साहेब ने काल यानि ज्योति निरंजन की प्रकृति भी बनाई। ज्योति निरंजन ने तपस्या करके कबीर साहेब ने बाद में राज्य माँगा था। उसी समय से मैं साधना कर रहा हूँ। उस समय मैं अकेला ही था पृथ्वी का कोई नामोनिशान नहीं था। गुरु गोरखनाथ और शिष्य मचंद्र नाथ के शरीर के निर्माता खुद ब्रह्मा जी हैं बहुत सी ऐसी सख्सियत थी जिन्होंने जन्म नहीं लिए। फिर मैंने अपने माथे पर यह निशान पहना है तब से में सत्पुरुष यानि कबीर साहेब के रूप में ही हूँ।
हे गोरखनाथ तुम्हारे ये चरों युग – त्रेता युग, सतयुग, द्वापर युग, और कलयुग मेरे सामने से ही निकले हैं। ये चारो युग मेरे सामने इसलिए निकले हैं क्योकि मैंने अनंत-अमर वास जिसे सतलोक कहा जाता है मैं उसे प्राप्त कर रखा है। इसलिए मैं पृथ्वी पर आध्यात्मिक और तात्विक ज्ञान देने के लिए प्रकट होता रहता हूँ। यदि तुम अपने गुरुदेव के द्वारा दिए गए उपदेश का पालन करते हो तो तुम सतलोक में प्रवेश कर सकते हो अन्यथा नहीं। सतलोक प्राप्ति के पश्चात् ही तुम्हे जन्म और मृत्यु के चक्र से आजाद किया जा सकता है।
कबीर साहेब की सारी बातें सुनकर गुरु गोरख नाथ जी कहते है की यधपि आपकी उम्र इतनी है और आप दिखते एक बच्चे के समान हैं।
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
तब कबीर साहेब गुरु गोरखनाथ को कहते हैं कि गोरखनाथ तुम यदि मेरी उम्र जानना चाहते हो तो सुनो। मैं यानि कबीर अमर-अजर हूँ अनंत युगो में बहुत विनाश हुआ था तब से ही मैं वैरागी हूँ यानी तपस्या कर रहा हूँ। अब तक करोड़ों ब्राह्मण, और देवी-देवता भी मरते रहते हैं और जन्म लेते रहते हैं। खुद भगवान् भी मरकर ही दूसरा जन्म लेते है। क्योकि ये जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे है।
ब्रह्मा, विष्णु और शिव की आयु
एक ब्रह्मा की आयु 100 दिव्य वर्ष है।
ब्रह्मा का एक दिन = 1000 चतुर्युग (चार युग) और रात की एक ही अवधि होती है।
{नोट: – ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इंद्रों के शासन का कार्यकाल समाप्त होता है। एक इंद्र के नियम का शब्द 72 चतुर्युग है। इसलिए, वास्तव में, ब्रह्मा जी का एक दिन 72 × 14 = 1008 चतुर्युग का होता है, और रात की अवधि भी यही होती है, लेकिन इसे केवल एक हजार चतुर्युग के रूप में लिया जाता है। “
महीना = 30 × 2000 = 60000
वर्ष = 12 × 60000 = 720000 (सात लाख बीस हजार) चतुर्युगी
ब्रह्मा जी की आयु –
720000 × 100 = 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग
विष्णु जी की आयु ब्रह्मा से सात गुना है –
72000000 × 7 = 504000000 (पचास करोड़ चालीस लाख) चतुर्युग
शिव जी की आयु विष्णु से सात गुना है –
504000000 × 7 = 3528000000 (तीन अरब 52 करोड़ 80 लाख) चतुर्युग
जैसे जैसे ये युग बीतते है वैसे वैसे इन युगों के साथ करोड़ों ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि शिव की मृत्यु हो जाती है। इन सब का यह चक्र पूरा होने पर एक ज्योति निरंजन यानी ब्रह्म काल की मृत्यु होती है। पूर्ण परमात्मा ने जो समय निर्धारित किया है उस समय में एक शंख प्रज्जवलित होता है ये विनाश परब्रह्म के कारण होता है। ऐसा सिर्फ माना गया है लेकिन वास्तव में ये जो भी व्यवस्थाएं है उन्हें पूर्ण ब्रह्मा गुप्त तरीके से करते हैं जिनका भेद आज तक किसी को नहीं है।
कबीर साहेब बताते हैं की करोड़ो निरंजन की मृत्यु हो चुकी है लेकिन मेरी आयु एक सेकंड भी कम नहीं हुई है। यानी की मैं अनंत पुरुष (सत्पुरुष) यानि भगवान् हूँ। कबीर साहेब जी कहते हैं की मैं सनातन हूँ आप जिन दूसरे देवताओं की पूजा कर सहारा लेकर भक्ति करते है वे ही सिर्फ नश्वर है तो आप नश्वर कैसे हो सकते हैं।
अरबों तो ब्रह्मा गए, 49 कोटि कन्हैया। सात कोटि शंभु गए, मोर एक नहीं पलैया।
कबीर साहेब जी कहते हैं की ब्रह्मो की मृत्यु तो अरबों बार है और श्री कृष्ण कन्हैया जो 49 करोड़ बार मर चुके और शिव शम्भू सात करोड़ बार मृत्यु को प्राप्त हो चुके है। ये सब जन्म और मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं लेकिन मेरा एक पल भी कम नहीं होता।
आप यहाँ देख सकते हैं की अमर कौन है? ब्रह्मा जी जिनकी 343 करोड़ बार, विष्णु जी 49 करोड़ बार और शिव शमभू 7 करोड़ बार मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। ये तीनो ही तीनो लोको के स्वामी कहलाते हैं यानि तीनो लोक इनके अधीन हैं। इन सब इतनी बार मृत्यु के पश्चात् एक ज्योति निरंजन यानि ब्रह्म काल का निधन होता है जो की विनाश का रूप है जिसे क्षर भी कहा गया है।
श्रीमद भगवत गीता जी में अध्याय 15 के श्लोक 16 में लिखा गया है की अक्षर यानि जो परब्रह्मा है वह नष्ट होता है। तब एक विनाश होगा और सभी ब्रह्माण्ड विनाश की स्थिति का सामना करेंगे। उस समय केवल सतलोक ही बचेगा। फिर से क्षर और अक्षर पुरुष का स्वाभाव शुरू होगा।
गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 16 में लिखा गया है की पूर्ण परमाता यानि सत्पुरुष वह कोई और है जिसे हम सनातन ईश्वर के नाम से जानते हैं। वह पूर्ण परमात्मा ब्रह्म सपुरुष कबीर साहेब हैं कोई और नहीं। सनातन यानि सत्पुरुष ही अमर हैं। उनकी भक्ति करने से एक भक्त जो उनकी भक्ति सच्चे मन से कर रहा है उसकी आत्मा अमर हो जाती है ये मुक्त हो जाती है।
इसका मतलब है की जन्म मृत्यु के इस चक्र से मुक्त हो जाती है। यह सब एक गुरु से प्राप्त सोहम शब्द से ही प्राप्त किया जा सकता है। सच्चा गुरु वही है जो सारे रहस्यों को जनता है वही आपको सोहम शब्द का जाप दे सकता है अन्य कोई और नहीं। इस शब्द के बाद सरनाम आता है सरनाम ही एक मात्र ऐसा नाम है जिसकी प्राप्ति के बाद आप सतलोक को प्राप्त कर सकते हो। क्योकि यदि आप सारनाम प्राप्त कर लोगे तो पूर्ण ईश्वर की प्राप्ति कर लोगे जो की सतलोक में निवास करते हैं।
नारद और मुह्हमद जैसी पुण्य आत्माये और देवी देवता जो जन्म और मृत्यु में हैं तो सामान्य मनुष्य का क्या हो सकता है। फिर कबीर साहेब कहते है की मैं न तो बूढ़ा हूँ, न ही बच्चा, आना ही किशोरावस्था में हूँ और न ही किसी प्रकर की दैवीय शक्ति हूँ मैं तो आपके सामने अपने लीलामयी शरीर में हूँ। कबीर साहेब गुरु गोरख नाथ से कहते हैं की हे गोरख जो मैंने आपको बताई यही मेरी वास्तविक आयु है।
परम परमेश्वर कबीर साहेब 50 फ़ीट लम्बे धागे पर बैठे
कबीर साहेब की बात सुनकर गुरु गोरखनाथ जी ने कहा की आप किसी शक्ति के मालिक नहीं है। आप और आपके गुरूजी यानि दोनों ही इस दुनिया को गुमराह कर रहे हो। आज मैं आपके इस ढोंगी रूप को सबके सामने लेकर ही रहूंगा। गुरु गोरख नाथ ने कहा की आप कह रहे हैं की आप ही पूर्ण परमेश्वर हैं तो आप में इतनी शक्ति तो अवशय ही होगी की आप मेरी स्थिति में आ सके यानि जितनी ऊंचाई पर में बैठा हूँ उतनी ही ऊंचाई पर आ जाइये।

कबीर साहेब अनुरोध करते हैं की रहने दीजिये गोरख नाथ जी यह ठीक न होगा लेकिन गोरखनाथ ने तब तक रट लगाए रखी जब तक कबीर साहेब (परमेश्वर कविर्देव)ने अपनी अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया। कबीर साहेब की जब में एक150 फ़ीट लम्बे धागे की गुच्छी थी वह धागा घाव भी कर सकता था। कबीर साहेब ने धागे को जेब से बहार निकला और एक सिरे को पकड़ कर दूसरे सिरे को आसमान की और फेक दिया धागा गुच्छी से निकलकर सीधा खड़ा हो गया। पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब ने आकाश की और उड़ान भरी और 150 फ़ीट ऊँचे धागे पर जाकर आरामदायक स्थिति में बैठ गए।
तब कबीर साहेब गोरख नाथ जी से कहते है की आइये नाथ जी एक जैसे स्तर पर बैठ का बाते करते हैं। गुरु गोरखनाथ ने उड़ान भरने का भरसक प्रयास किया लेकिन उड़न की जगह पीछे हट रहे थे। जब पूर्ण परमात्मा अपने अलौकिक रूप में होते हैं तो सब सिद्धियाँ और शक्तियां काम करना बंद कर देती हैं। गोरखनाथ जी अपने विफल प्रयास के साथ थक गए तो सोचने पर मजबूर हो गए की यह संत को साधारण नहीं है। वह निश्चिन्त ही अवतार लिए हुए ईश्वर हैं ये ब्रह्मा, विश्नि, और शिव तीनो में से एक का रूप हो सकते हैं।
गोरख नाथ ने भगवान् कबीर साहेब से याचना करते हैं की हे महात्मन कृपया अपना परिचय दें – हे महान पुरुष आप कौन हैं? कृपया आप निचे आएं और मुझ तुच्छ अज्ञानी को अपना परिचय दें ताकि मैं आपको पहचान सकूं कि आप कौनसी शक्ति हैं और कौनसे लोक से आये हैं?
तब कबीर साहेब निचे आकर गोरख नाथ को कहते हैं कि –
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता–पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
कबीर साहेब ने गोरखनाथ को कहा कि हे गोरखनाथ, तुम मुझे कैसे पहचान सकते हो क्योकि मैं आया ही उस स्थान से हूँ जिसके बारे में कोई भी नहीं जनता और वह एकमात्र स्थान केवल सतलोक है जिसकी प्राप्ति मेरे दिए हुए नामो को प्राप्त करके ही हो सकती है तुम्हारे इन शास्त्रों के अनुसार की जाने वाली भक्ति से नहीं।
आप मेरी शक्ति के बारे में जानना चाहते थे न मैंने इस बच्चे का रूप स्वयं धारण किया है। मैं काशी शहर के लहरतारा झील में खड़े कमल के फूल में विराजमान हूँ। मैंने किसी के गर्भ से जन्म नहीं लिया है यानि मेरा जन्म हुआ ही नहीं है। यदि आप सोच रहे हैं की मेरे माता पिता का नाम नीरू और नीमा है हाँ वह दोनों ही मेरे माता पिता है क्योकि उन्होंने ही मेरा पालन -पोषण किया है न की मुझे जन्म दिया है वे तो मुझे उस झील से उठाकर अपने घर ले आये थे।
तब से ही मैं उनके (बुनकर) पुत्र के रूप में रह रहा हूँ। न ही मेरी कोई पत्नी है। मेरा वास्तविक नाम केवल और केवल कबीर है। हे गोरखनाथ जी आप जिसे निराकार ईश्वर यानि अलख निरंजन कहते हैं वह सब भी मेरे ही मंत्र का जप करते हैं। जो भक्त सतनाम का जाप करता है केवल वहीं मेरे और सतलोक के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। मेरे शरीर में न तो खून है और न ही मांस ये तो केवल एक ज्योति के समान है।
सतनाम का जाप करने मात्र से कोई भी भक्त सतलोक कब प्राप्त कर सकता हैं यानि मुझे प्राप्त कर सकता है। सतनाम के बाद बारी आती है तो सरनाम की जो आपको जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्रदान करता है यानी तुम काल के उस चक्र से मुक्त हो जाते हो जिसके अंतर्गत आप जन्म और मृत्यु को प्राप्त होते हो जिसमे हर प्रकार के प्राणी का जन्म और मृत्यु आती है जिनकी संख्या इस पृथ्वी पर 8400000 है। तुम्हे उनकी पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इससे मुक्ति पाने का एक ही स्रोत है और वह है सरनाम। यदि आप मेरी शरण में आ जाओगे तो मैं आपको इन सब से मुक्त कर दूंगा यानी मेरी शरण में आते ही काल पीछे हट जायेगा अन्यथा काल आपकी भक्ति जो आप चार युगों से करे आ रहे हैं उसको नष्ट कर सकता है।
काल को इक्कीस ब्राह्मणो का स्वामी कहा गया है और वास्तव में ऐसा है। काल को निर्देश दिया गया है की वह हर रोज 1 लाख जीवित प्राणियों के खायेगा और उसके 1 चौथाई प्राणियों को पैदा करेगा। काल अपने इस चक्र में निरंतर कार्यरत है। काल ने अपने इस कार्य को सुव्यवस्थित ढंग से चलने के लिए 84 लाख प्राणियों या प्रजातियों का निर्माण किया है। काल की पत्नी अष्टांगी यानि आठ हाथों वाली है। काल और अष्टांगी के मिलान से तीन पुत्रों का जन्म हुआ है जिनके नाम ब्रह्मा, विष्णु, और शिव (महेश) रखे गए।
यह तीनो ही आगे सृष्टि को चलने का काम करते हैं। ब्रह्मा को पिंडों के उत्पादन, विष्णु को इनके रख रखाव और शिव को विनाश का कार्य सौंपा गया है। ये तीनो पहले तप करके सिद्धि प्राप्त करते हैं ताकि इनके पास अलौकिक शक्तिया आ सकें। इन प्राप्त अलौकिक शक्तियों से ही ये अपने उदेश्यों को पूरा कर पाते हैं। और अंत में काल के द्वारा इनको मृत्यु प्राप्त हो जाती है और फिर ये तीनो दोबारा जन्म लेते हैं। इन सब से ऊपर भी एक परमात्मा है जिसे कबीर के नाम से जाना जाता है और वह केवल मैं ही हूँ कोई और अन्य नहीं।
गुरु गोरखनाथ के द्वारा परम परमेश्वर कबीर साहेब का दोबारा परीक्षण करना
गुरु गोरखनाथ के मन में यह तो निश्चिन्त था की यह अवश्य ही कोई अलौकिक शक्ति का रूप हैं। तब गोरखनाथ ने गंगा नदी की और भागते हुए कहा की यदि आप मुझे इस नदी में ढूंढ कर दिखाते हैं तो मैं आपकी शरण में आ जाऊंगा और आपको पूर्ण परमात्मा भी स्वीकार कर लूंगा यह कहकर गोरखनाथ ही गंगा नदी में छलांग लगा लेते हैं और एक मछली का रूप धारण कर लेते हैं।
वहां पर भक्तो की भीड़ होती है कबीर साहेब उस मछली रूप में गोरखनाथ को नदी से बहार लाकर दिखते हैं और गोरखनाथ उनको परमात्मा के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। कबीर साहेब सतनाम और सरनाम दोनों से ही नवाजा और उन्हें सतलोक ले गए। इस तरह से गुरु गोरखनाथ भी काल के जाल से मुक्त हो गए।
गीता जी के अध्याय 14 श्लोक 26, 27 कहा गया है कि एक भक्त जो साधु के रूप में मेरी भक्ति करता है अर्थात वह मुझ (काल / ब्रह्म) पर पूर्ण रूप से निर्भर है (अन्य देवी-देवताओं और माता, ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि की पूजा को छोड़कर) करता है। भक्ति केवल मेरे एकमात्र मंत्र ओम के जाप से ही वह उपासक उस परमपिता परमात्मा को पा सकता है। और भी साधना करके मुझे अपना माध्यम बना कर उस परमपिता के सुख को भी प्राप्त कर सकता है।
जिस प्रकार एक छात्र मैट्रिक करने के बाद बी.ए., एम. ए. और किसी कोर्स में प्रवेश लेता है और कोर्स पूरा हो जाने के पश्चात् वह नौकरी प्राप्त कर लेता है। जो ख़ुशी आपको नौकरी प्राप्त होने पर होती है। और जो दुःख आपको कोर्स करने के पश्चात् नौकरी न मिलने पर दुःख होता है। ठीक इसी प्रकार, काल भगवान कहते हैं मेरे (ब्रह्म) के सहयोग से ही तुम अमरता, चिरस्थायी प्रकृति और धर्म और सनातन भगवान के निरंतर और स्थायी सुख को प्राप्त कर सकते हो।
गीता जी अध्याय 18 श्लोक 66 में वर्णित है कि यदि आप मुझे प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको सभी धार्मिक प्रथाओं (साधना के परम्परागत तरीकों) को त्यागना होगा और एक पूर्ण ब्रह्म की शरण में जाकर ही तुम्हारे सारे पापों को क्षमा किया जा सकता है। जैसे, भक्त आत्माएँ, जिन्होंने विशेष रूप से काल से मुक्त होने के लिए ओम मंत्र का जाप किया था, भगवान कबीर की दया दृष्टि से पूर्ण परमात्मा की भक्ति पाकर ही वे काल के चक्र को पार करके ही मुक्ति प्राप्त कर सके हैं।
जिस प्रकार परम भक्त नामदेव एक ओम नाम का ही जाप करते थे। जिसके फलस्वरूप उन्हें कई अलौकिक शक्तियां प्राप्त हुईं परन्तु वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके। तब कबीर साहेब ने श्री नामदेव जी को अपनी शरण में लेकर उन्हें सतलोक और सतपुरुष के बारे जानकारी प्रदान की और उन्हें सोहम मंत्र दिया, जोकि परब्रह्म का जाप है।
उसके बाद कुछ समय पश्चात् कबीर साहेब ने श्री नामदेव को सारशब्द दिया जो पूर्ण ब्रह्म का जाप है। तब नामदेव जी मुक्त हुए यानि उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई। इसी प्रकार गुरु गोरखनाथ जी भी अलख निरंजन मंत्र का जाप किया और चांचरी मुद्रा की साधना में लीन हो गए। उनसे खुश होकर कबीर साहेब ने ओम और सोहम मंत्र प्रदान किया। और भी आखिरी में कबीर साहेब ने गोरखनाथ को सारशब्द दिया जिसने गोरखनाथ को काल के जाल में मुक्ति दी।